मंगलवार, 3 अप्रैल 2012

कोई भी हो सकता है टी बी का शिकार


राजेश राना
राहुल शर्मा एक बीमा कंम्पनी में मार्केटिंग एग्जिक्यूटिव हैं और उम्र 27 साल है। वो टयूबरकुलोसिस यानि टी. बी. का शिकार हो गये हैं। राहुल कहते है मुझे अभी भी विश्वास नहीं हो रहा कि में कैसे टी.बी. का शिकार हो गया। मुझे बस मामूली खांसी की शिकायत थी जिसके लिए मंे डाॅक्टर के पास गया। जब डाॅक्टर ने मेरे चेस्ट का एक्स-रे किया तो मुझे बताया गया कि मुझे टीबी है। राहुल कहते हैं कि मुझे आज तक कोई खतरनाक बीमारी नहीं हुई, हां मुझे बचपन में थोड़ी सी ठंड या गर्मी से जुकाम वगैरह की शिकायत जरूर हो जाती थी लेकिन ये बड़ी ही आसानी से ठीक हो जाती थी। राहुल एक युवा हैं और उन्हें कभी बहुत बड़ी बीमारी नही हुई तो फिर कैसे राहुल टीबी का शिकार हो गये। इसी को विस्तार से जनने के लिए हमने बात की गुरू तेगबहादुर अस्पताल के वरिष्ठ चिकित्सक अनिल सारस्वत से। डा. अनिल ने बताया कि टीबी एक ऐसी बीमारी है जो किसी को भी किसी भी उम्र में हो सकती है। अगर आपकी इम्यूनिटी कमजोर है, आप एनिमिया या एडस जैसी किसी बीमारी के शिकार हैं, ऐसे में आपको टीबी होने का खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा आप उन लोगों के संपर्क में आते हैं जो टीबी संक्रमित हैं तो भी आप टीबी से संक्रमित हो सकते हैं। टीबी को गरीब लोगों और गरीब देशों की बीमारी माना जाता है।
विश्व टीबी दिवस कि विशेष अवसर पर हम लेकर आये टीबी पर एक आपके लिए विषेश कवर स्टोरी। 26 मार्च को टीबी दिवस है और हमारे देश में अभी भी लोग टीबी के प्रति कम जागरूक हैं। लोगों को जागरूक करने के लिए और टीबी से बचाव के लिए हमने एक्सपर्ट डाॅक्टरस से बात की कि कैसे टीबी से बचा जा सकता है और कैसे टीबी लोगों को असानी से संक्रमित कर रही है। ये विस्तार से जानने के लिए पढिए राजेश राना के इस लेख में।
टीबी एक ऐसी बीमारी है जो आपको पता भी नहीं चलने देगी और आपको अपनी गिरफत में ले लेगी। इसका पता तब चलता है जब आपका वेट अचानक से कम होने लगता है या आपके कफ में खून आने लगे।

टूबरक्युलोसिस यानी टीबी, बैक्टीरिया के कारण होने वाली संक्रामक बीमारी है। इसका मतलब कि यह एक से दूसरे व्यक्ति में फैलने वाला रोग है। इसका वैज्ञानिक नाम माइकोबैक्टेरियम टयूबरक्युलोसिस है। टीबी की बीमारी ज्यादातर फेफड़े को प्रभावित करती है, लेकिन शरीर के किसी भी अंग पर इसका दुष्प्रभाव देखने को मिल सकता है।
ये एक ऐसी बीमारी है जो आपके थोड़े से केयरलेस होने पर आपको संक्रमित कर सकती है। इसी की वजह से आज टीबी दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी बीमारी बन गयी है। ये बीमारी रोजाना एक हजार लोगों को मौत का शिकार बना रही है।
कैसे होता है संक्रमण
टीबी ग्रसित रोगियों के कफ, छींकने, खांसने, थूकने से टीबी का बैक्टीरिया बड़ी ही आसानी से एक मनुष्य से दूसरे मनुष्य को संक्रमित कर देता है।
संक्रमित व्यक्ति के कपड़े छूने या फिर उससे हाथ मिलाने से टीबी नहीं फैलता।
लक्षण
टीबी होने पर फेफड़े में इंफेक्शन के अलावा शरीर में थकान महसूस करना, हर शाम को बुखार आने या बुखार जैसा महसूस होने के साथ-साथ रात में पसीना आने जैसी समस्या से दो चार होना पड़ता है।
लंग इंफेक्शन जब बहुत ज्यादा हो जाता है तो कफ, सीने में दर्द, कफ में खून आने और सांस लेने में दिक्कत होने जैसी समस्या भी आ सकती है।
अगर कफ में खून आना शुरू हो गया तो समझ लो बीमारी खतरनाक स्टेज पर पहुंच गयी है।
अचानक से वजन कम होना टीबी का बहुत बड़ा लक्षण है ऐसे में तुरंत चैकअप कराना चाहिए।

टीबी होने पर क्या होता है
जब टयूबरक्युलोसिस बैक्टीरिया सांस के जरिए फेफड़े तक पहुंचता है तो वह कई गुना बढ़ जाता है। परिणामस्वरूप फेफड़ों को बुरी तरह से प्रभावित करता है। दूसरी ओर टीबी, किडनी, हड्डी, मस्तिष्क और स्पाइनल कॉर्ड जैसे शरीर के अन्य अंगों को भी प्रभावित करता है। हालांकि शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता शरीर पर इसके बढ़ते प्रभाव को रोकने में मदद करती है, लेकिन जैसे-जैसे शरीर की यह रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती जाती है, टीबी के संक्रमण से बचना मुश्किल होता जाता है।
खतरा हो सकता है यदि आप
मधुमेह रोगी, कभी कैंसर के शिकार रहे हैं या फिर एचआईवी संक्रमित रहे हैं क्योंकि ये सारी बीमारी आपके इम्यून सिस्टम को कमजोर कर देते हैं।
अगर आप स्वास्थ्य सेवा कर्मचारी हैं तो आप इसके खतरे की जद में रहते हैं। क्योंकि संक्रमित मरीज से इसका बैक्टीरिया आसानी से आपके अंदर प्रवेश कर सकता है।
सक्रिय टीबी वाले लोगों के संपर्क में आने से किसी को भी टीबी का संक्रमण हो सकता है। अगर आपकी इम्यूनिटी कमजोर नही है तो आप सक्रिय टीबी का शिकार नही हो सकते।
भारत में ये बीमारी बड़े ही शांत तरीके से फैल रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की दक्षिण-पूर्व एशिया रिर्पोट में भी भारत को नंबर वन पर रखा है। इसमें बताया गया है कि भारत में महिलाएं टीबी का सबसे ज्यादा शिकार हो रही हैं।
जांच के तरीके
छाती का एक्स-रे, बलगम या बलगम के साथ आये खून की जांच और स्किन टेस्ट।
छाती के एक्स-रे से टयूबरक्युलोसिस का पता लगाया जा सकता है। क्योंकि टीबी का बैक्टीरिया फेफड़ों पर ज्यादातर अपना हमला करते है। इससे फेफड़ों में कुछ स्पोट बंन जाते हैं।
इलाज
नई दिल्ली के दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल के सीएमओ डॉ. विनीत सोनी के अनुसार कुछ दशकों पूर्व तक इसका इलाज संभव नही था, लेकिन एंटीबायोटिक्स के जरिए आज इसका इलाज किया जाने लगा है।अलग-अलग तरह के टीबी रोगियों को अलग-अलग तरह कें इलाज की जरूरत होती है।
डॉक्टरस के अनुसार टीबी का इलाज संभव है। टीबी के समुचित इलाज के लिए निशुल्क डॉट्स केंद्र खोले हुए हैं। उन्हें समय≤ पर दवाएं दी जाती हैं और उपचार का पूरा ध्यान रखा जाता है।
टीबी के इलाज के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि दवाईयां डाॅक्टर के निर्देशानुसार ली जायें। टीबी के लिए 6-9 महिने तक दवाई खानी पड़ती है। लेकिन कुछ मरीजों में ये अवधि बढ़ाई जा सकती है।
बचपन में भी बीसीजी वैक्सीन सभी सरकारी अस्पतालों में दी जाती है। इसी वैक्सीन की वजह से इम्यून सिस्टम शरीर की रक्षा करता है। अगर उम्र की किसी स्टेज में किसी रोग या कम एनर्जी की वजह से शरीर का इम्यून सिस्टम कमजोर हो गया तो फिर ऐसे में आप सक्रिय टीबी का शिकार हो सकते हैं।
क्या हो आहार
टीबी के मरीजों को संतुलित आहार के साथ.साथ हाई प्रोटीन डाइट देना आवश्यक हो जाता है। इसके लिए उन्हें दूध, पनीर, अंडे, चिकन और मछली खाने की सलाह दी जाती है। यदि सामान्य व्यक्ति को एक ग्राम प्रोटीन डाइट लेने की सलाह दी जाती है तो टीबी के मरीजों को अपनी डाइट में 1.5 ग्राम प्रोटीन लेने की सलाह दी जाती है।
कैसे होती टीबी की बीमारी गंभीर
वर्ड हेल्थ ओर्गेनाइजेशन के लिए काम करने वाले डा. शमीम मेनन कहते है कि एमडीआर टीबी की वो कंडीशन है जिसमें कोई दवा काम नही करती। ये कंडीशन तब आती है जब टीबी लास्ट स्टेज में पहुंच जाती है। जिसके लिए अभी कोई ड्रग्स नही बनी है। ये अवस्था तब आती जब टीबी का सही तरह से इलाज नही हो पाता।
टीबी के मरीजों को इस बात का खास ख्याल रखना चाहिए कि वे बिना सही जांच.पड़ताल किए दवाएं न लें। साथ ही उन्हें इस बात का भी खास खयाल रखना चाहिए कि दवाओं की पूरी डोज खत्म कर लें और तब तक दवाएं बंद न करें जब तक कि चिकित्सक खुद इसकी सलाह न दें।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें