गुरुवार, 24 अक्तूबर 2013

समझे पीडियाट्रिक स्ट्रोक को

ऐसा माना जाता है कि स्ट्रोक की समस्या केवल बुजुर्गों की समस्या होती है जबकि वास्तविकता यह है कि बच्चों को भी स्ट्रोक हो सकता है। सबसे बड़ी बात यह है कि केवल बच्चे ही नहीं बल्कि नवजात शिशु भी इसके शिकार बन सकते है। बच्चों में होने वाले स्ट्रोक को पीडियाट्रिक स्ट्रोक के नाम से जाना जाता है। बच्चे अक्सर अपनी समस्याओं को व्यक्त नहीं कर पाते है जिस कारण  स्ट्रोक बच्चो को ज्यादा प्रभावित कर सकता है। आइयें इस विषय को और गंभीरता से समझते है। 

लक्षण:
  • नवजात शिशुओं के शरीर में अकड़न आना 
  • सिर में दर्द होना 
  • बात करने में कठिनाई का होना 
  • शब्दों का साफ़ उच्चारण करने में कठिनाई होना
  • शरीर के एक तरफ के हिस्से में कमजोरी महसूस होना 
  • आँखों की पुतलियों के तारतम्य का बिगड़ना, आदि। 
इलाज :

ऐसा माना जाता है कि स्ट्रोक का इलाज संभव नहीं है। मगर वास्तविकता है यह है कि इसका इलाज पूरी तरह से हो सकता है। स्ट्रोक की समस्या एक ऐसी समस्या है जिसके सही कारणों का पता लगा पाना संभव नहीं होता है। यहीं कारण है कि कई बार इस समस्या का पूरी तरह से इलाज नहीं हो पाता है। और जब बात बच्चों की हो तो यह और भी मुश्किल हो जाता है क्योंकि बच्चे अपने शरीर में होने वाली परेशानी को बयान नहीं कर पाते है। अगर समाया के कारण का पता लग जाएँ तो बड़ी ही आसानी से इस समस्या पर काबू पाया जा सकता है। 

प्रभाव : 

स्ट्रोक का प्रभाव बच्चों और बड़ों दोनों पर ही सामान रूप से होता है। जैसे -
  • शरीर के एक तरफ के हिस्से में कमजोरी महसूस होना 
  • शरीर के एक तरफ के हिस्से में लकवा मारना 
  • बोलने में कठिनाई होना 
  • खाने में या निगलने में कठिनाई होना 
  • आँखों की पुतलियों के तारतम्य का ख़राब होना
  • मिर्गी के दौरे का आना, आदि। 
ध्यान रहें बच्चे बड़ों की तुलना में ज्यादा जल्दी इस समस्या से उबर सकते है। मगर जिन बच्चों को या नवजात शिशुओं को स्ट्रोक के बाद मिर्गी के दौरे पड़ने की समस्या हो जाती है अक्सर उन बच्चों के पूरी तरह से ठीक होने की संभावनाएं थोड़ी सी कम होती है। 

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