शुक्रवार, 23 नवंबर 2012

टैलेंट नही होता विक्लांगता का मोहताज


कहते हैं ना दोस्तों जब जज्बात हो आगे बढ़ने का तो रास्ता खुद ही बनता चला जाता है। चाहें आप शारीरिक और मानसिक रूप से कितने ही कमजोर हों मगर टैलेंट कभी छुपता नही। हर इंसान में कुछ ना कुछ टैलेंट होता है, चाहें वो नाॅर्मल हो या एब्नाॅर्मल। इस स्टोरी में हम आपके सामने ऐसे ही दो टैलेट की सफलता के बारे में बता रहे हैं। जिन्होंने अपने परिवार वालों का ही नहीं, देश का सीना भी गर्व से उंचा किया है। इन्हांेने कभी भी अपनी विक्लांगता को अपनी कमजोरी नही बनने दिया।

तीन दिसंबर को विश्व विक्लांगता दिवस है। इसी को ध्यान में रखते हुए हम लेकर आये हैं आपके सामने कि कैसे लोग विक्लांग होने के बावजूद भी अपने सपनों को साकार करते हैं। अगर आप को कोई भी विक्लांगता है तो आप भी हमारे इन हीरो से प्रेरणा लेकर सफलता की वो दास्तां लिख सकते हो जिसके लिए लोग तरसते हैं। जिस सफलता पर अपने ही नही, दुनिया वाले भी आपको सलाम करते हैं।

नानकचंद एग्लो काॅलिज की मानोविज्ञान विषय की प्रोफेसर रीतिका रस्तोगी कहतीं हैं कि कुछ लोगों में ऐसी भावना आ जाती है कि मैं तो विक्लांग हूॅ मैं खेल नहीं सकता, मैं गा नही सकत, मैं लोगों के सामने अपने आप को सही से प्रस्तुत नहीं कर सकता। यहीं हींन भावना विक्लांग लोगों को आगे बढ़ने से रोकती है। अगर इसी हीन भावना को इनके अंदर से निकाल दिया जाये तो ये लोग आसमान की बुलंदियों को छूने को तैयार रहते हैं।

एच. एन. गिरिश, लंदन पैराआॅलंपिक के सिल्वर मेंडलिस्ट। इन्होंने हर भारतीय को उस वक्त गौरवान्वित कर दिया जब दुनियाभर के एथलीटों को पछाड़े हुए पुरूष उंची कूद में दूसरा स्थान हांसिल किया। उस वक्त हर भारतीय खेल प्रेमी का सीना गर्व से चैड़ा हो गया था। क्योंकि पदक जीतकर भारत का तिरंगा फहराने वाले वो भारतीय दल के अकेले युवा थे।

गिरिश के बारे में जानने के लिए हमने बात की उनके पिता श्री नागेराजे गोंडवा से। उनके पिता ने बताया कि गिरिश का जन्म 26 जनवरी यानि गणतंत्र दिवस के दिन 1988 को हुआ। वैसे तो देशप्रेम की भावना इसी बहाने गिरिश में बचपन से ही पैदा हो गई थी। उनका एक पैर बचपन से ही बीमारी का शिकार हो गया था, इस वजह से उन्हें युवा जीवन में कई परेशानियां देखनी पड़ी। मगर उनका हौंसला कभी कमजोर नही हुआ।

टैलेंट की पहचान
जब कर्नाटका स्पोर्टस एसोसिएशन फोर फीजिकली हैंडिकेप्ट के सदस्यों ने देखा कि एक हैंडिकेप्ट लड़का नाॅर्मल लड़कों को पीछे छोड़ रहा है तो तुरंत गिरिश के टैलेंट को पहचानकर एसोसिएशन में आने का न्यौता दे दिया। फिर क्या था गिरिश ने कभी पीछे मुड़कर नही देखा और आज वो देश के चोटी के एथलीटों में गिने जाते हैं।

सफर सफलता का
गिरिश की सफलता की कहानी तो उस वक्त ही लिखी जा चुकी थी, जब उन्हें पहली बार स्टेट लेवल मीट में नाॅर्मल एथलीटों को चुनौती दी। इंटरनेशनल लेवल पर गिरिश ने जूनियर पैरा आॅलंपिक खेलों में आयरलैंड में कांस्य पदक जीतकर पहली बार अपनी प्रतिभा का नमूना पेश किया। इसके बाद गिरिश ने नेशनल हाई जंप चैपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतकर देश में अपने आप को सर्वश्रेष्ठ साबित किया। गिरिश ने कुवैत और मलेशिया की एथलीट मीट में भी गोल्ड मैण्डल अपने नाम किया। लेकिन हर एथलीट का जो सपना होता है कि वो आॅलंपिक में आपे देश के लिए मेण्डल जीते। गिरिश की ये ख्वाहिश उस वक्त पूरी हो गई जब उन्होंने लंदन पेराआॅलंपिक में सिल्वर मैण्डल जीता। इसके बाद देश का हर खेल प्रेमी गिरिश की सफलता का गुणगान करने लगा।

मलाल गिरिश का
गिरिश के पिताजी कहते हैं कि उसने यहां तक पहुंचने के लिए काफी मेहनत की। एक बार तो गिरिश थक गया और बोला कि में हैंडीकेम हूं और दूसरे एथलीटों को चुनौनी नही दे सकता। लेकिन इसी वक्त कर्नाटका स्पोर्टस एसोसिशन के कोच ने उसे मनौवैज्ञानिक रूप से इतना मजबूत बना दिया कि कभी उसने अपनी विक्लांगता के बारे में नही सोचा। लेकिन आज हमें इस बात का दुख है कि दूसरे आॅलंपिक मेण्डल धारकों की तरह सरकारों और आयोजकों ने सम्मान नही दिया।

समाज विक्लांगों के टैलेंट को जाने
गिरिश कहते हैं कि हमारा समाज विक्लांग लोगों के टैलेंट को आज भी उस नजर से नही देखता जिस नजर से नाॅर्मल लोगों को लिया जाता है। आज लोगों को उनकी लाइफ के साथ भावुकता का जुड़ाव दिखाने के साथ ही इस टैलेंट को वास्तविक टैलेंट मानने की जरूरत है।

अब हम बात करते हैं टीवी रीयलटी शो इंडिया गाॅट टैलेंट की, जिसमें कई शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर हर उम्र के लोग अपने टैलेंट से लोगों का मनोरंजन कर रहे हैं। इनमें से कमल किशोर शर्मा भी एक हैं। जिनकी उम्र 53 साल है। वो बोल नही सकते, सुन नहीं सकते, लेकिन फिर भी वो हर उस इंसान की तरह जी रहे हैं जैसे नाॅर्मल इंसान अपनी जिंदगी को जीता है। बल्कि उनके पारिवारिक जीवन को देखकर तो ऐसा लगता है जैसे जिंदगी में कोई कमी है ही नही।

ख्वाहिश दुनिया को अपना टैलेट दिखाने की
वैसे तो एक इंसान जो सुन नही सकता, बोल नही सकता उसकी पारिवारिक और सरकारी नौकरी को देखकर किसी को भी हैरानी हो सकती है। कमल जी का भरा पूरा परिवार हमें दिखाता है कि विक्लांगता को ओढ़ना नही चाहिए। आज कमल जी एक नाॅर्मल इंसान की तरह अपनी सरकारी नौकरी करते हैं। उनके अपने प्यारे बच्चे हैं। मगर उनकी ख्वाहिशें आज भी रूकने का नाम नही ले रहीं। उनकी एक ख्वाहिश थी कि इंडिया गाॅट टैलेंट में जाकर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाना। जिसे पूरा करने के लिए वो पहुंचे अपने परिवार के साथ इंडिया गाॅट टैलेंट में। जहां जज और दर्शक उनके टैलेंट के कायल हो गये।

परिवार ने दिया हर कदम पर साथ
कमल किशोर कहते हैं कि मेरा परिवार हमेशा मेरे साथ खड़ा रहा। चाहें मेरा बचपन हो जिसमें मेरे मम्मी-पापा ने मुझे कभी भी अलग नही समझा। मुझे कभी भी मेरी कमजोरी का अहसास नही होने दिया। आज भी मेरी पत्नी और मेरा बेटा हर वक्त मेरे साथ खड़े होते हैं।

कहानी रीयलटी शो की
टीवी पर रीयलटी शो को देखते हुए मेरे मन में आया कि मैं भी यहां अपना टैलेंट दिखा सकता हूं। जब मैने ये बात अपने बेटे और अपनी पत्नी से बताई तो वो एकदम से खुश हो गये। मेरा बेटा गौरव शर्मा मेरे साथ इंडिया गाॅट टैलेंट में मेरे साथ आया। मुझे यहां आकर अपने आप पर अब तो इतना विश्वास हो गया कि मैं वो हर काम कर सकता हूं जो एक आम इंसान कर सकता है।

कमल किशोर कहते हैं कि मैं उन लोगों से एक बात ही कहना चाहता हूं जो शारीरिक रूप से कमजोर हैं, वो कोई भी कार्य करते वक्त ये ना सोचें कि मैं ये काम नही कर सकता बल्कि ये सोचें कि मैं ये काम कैसे कर सकता हूं।
आपने हमारे साथ हमारे दो हीरो के बारे में जाना कि कैसे उन्होंने अपनी कमजोरी को कभी भी अपने रास्ते में नहीं आने दिया। कैसे वो सफलता सीढि़ चढ़ते चले गये। तो फिर आप क्यों नही कर सकते ऐसा। तो आज से ही रखिए अपने जीवन में एक टार्गेट। क्योंकि इस टार्गेट को प्राप्त करने के लिए आपके साथ होगी हमारे इन हीरोज की प्रेरणा।  
     

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