बुधवार, 1 अगस्त 2012

गर्भावस्था में करें ब्लड प्रैशर को मैनेज


गर्भावस्था के दौरान रक्तचाप की बीमारी महिलाओं के लिए कई बार खतरनाक साबित हो सकती है। महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान अवसाद के कारण भी रक्तचाप की शिकायत हो सकती है, जो भविष्य में दिल की बीमारी का खतरा उत्पन्न कर सकता है। आम तौर पर माना जाता है कि गर्भावस्था में महिलाओं में उच्च रक्तचाप अगर मां बनने के बाद ठीक हो जाए तो इसका कोई दीर्घकालिक प्रभाव नहीं होता है। गर्भावस्था के दौरान उच्च रक्तचाप से पीडि़त महिलाओं में इस अवधि में सामान्य रक्तचाप वाली महिलाओं की तुलना में भविष्य में हृदयरोग से संबंधित बीमारी का खतरा 57 प्रतिशत ज्यादा होता है। गर्भावस्था की जटिलताओं में उच्च रक्तचाप एक सबसे बड़ा कारक है जो गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है और महिला एवं गर्भस्थ शिशु के लिए खतरनाक हो सकता है। 
यदि उच्च रक्तचाप की समस्या लंबे समय से हो तो यह दीर्घकालिक उच्च रक्तचाप या क्रॉनिक हाइपरटेंशन कहलाता है। यदि उच्च रक्तचाप गर्भधारण करने के 20 सप्ताह बाद, प्रसव में या प्रसव के 48 घंटे के भीतर होता है तो यह प्रेग्नेंसी इंड्यूस्ड हाईपरटेंशन कहलाता है। अगर रक्तचाप 140/90 या इससे अधिक है तो स्थिति गंभीर हो सकती है। मरीज एक्लेम्पशिया यानी गर्भावस्था की एक किस्म की जटिलता में पहुँच जाता है जिससे उसे झटके आने शुरू हो जाते हैं।
महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान उच्च रक्तचाप की समस्या बहुत देखी जाती है। गर्भ के विकास के साथ उच्च रक्तचाप की स्थिति अधिक बढ़ती है। गर्भावस्था के भोजन में पौष्टिक खाद्य पदार्थों के अभाव में महिलाएं रक्ताल्पता की शिकार होती हैं। रक्ताल्पता से गर्भस्थ शिशु का विकास रुक जाता है। गर्भवती महिला को बहुत हानि पहुंचती है। गर्भस्राव की आशंका बनी रहती है।
गर्भावस्था के दौरान कई कारणों से ब्लडप्रेशर बढ़ जाता है, जो मां और गर्भस्थ शिशु के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। यदि ब्लडप्रेशर 130/90 की सीमा से ऊपर है तो यह उच्च रक्तचाप या हाई ब्लड प्रेशर कहलाता है।
कारण
1  गर्भवती महिला में उच्च रक्तचाप की शिकायत गर्भावस्था के चलते उत्पन्न होती है।
2  कुछ महिलाओं में हाई ब्लडप्रेशर की शिकायत गर्भावस्था के पहले से ही होती है।
3  कई बार गर्भावस्था में उच्च रक्तचाप की शिकायत किडनी से संबंधित बीमारी, मोटापा, चिंता और मधुमेह आदि के कारण होती है।
थोड़ा बहुत हाई ब्लडप्रेशर कुछ देर आराम करने से और बायीं करवट लेटने से कम हो जाता है, किंतु यदि ब्लडप्रेशर के साथ सिरदर्द, मतली, उल्टी, आंख से धुंधला दिखना, पैरों में सूजन और सांस फूलना आदि में से कोई समस्या हो तो बात गंभीर हो जाती है।
सतर्कता एवं उपचार .
1  यदि कोई महिला गर्भावस्था से पूर्व ही हाई रक्तचाप से ग्रस्त है, तो उसे हृदय रोग विशेषज्ञ और स्त्री रोग विशेषज्ञ दोनों की से सलाह लेनी चाहिए। प्रसव भी इन दोनों की देखरेख में हो तो खतरे कम रहेगे।
2  भोजन में नमक कम लें। लो सोडियम साल्ट जैसे सेंधा नमक का उपयोग कर सकती है।
3  मलाईदार दूध, मक्खन, घी, तेल, मांसाहार से परहेज करना चहिए।
4  गर्भवती महिलाओं को पॉली अनसैचुरेटेड तेल जैसे सूरजमुखी के तेल का प्रयोग करना चाहिए।
5  लहसुन और ताजे अदरक के सेवन से रक्त के थक्के नहीं जमते है और कोलेस्ट्रॉल नियंत्रित होता है।
6  गर्भावस्था के दौरान यदि उच्च रक्तचाप निम्न रक्तचाप की समस्या हो जाए तो डॉक्टर की सलाह जरूर लें और उनके कहे अनुसार मेडिसन लें।

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