रविवार, 25 अप्रैल 2010

दोस्त बनकर रहें

उम्र के साथ-साथ शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्तर पर बहुत से बदलाव आते है। यह सभी बदलावों का होना सामान्य है। पर कई बार किशोरावस्था में होने वाले बदलावों को कुछ बच्चे अपनाने के लिए तैयार नही हो पाते है। कई बार तो वे इन बदलावों से इतना परेशान हो जाते है कि धीरे धीरे वे डिप्रैशन का शिकार होने लगते है। आइये जानते है इस लेख में कि कैसे आप अपने बच्चे को उम्र के इस पड़ाव में आ रहें परिवर्तनों के साथ बहना सिखा सकें।

परिवर्तन प्रकृति का नियम है। पर बालमन इस सच्चई को कितनी जल्दी अपनायेही इस विषय में कुछ भी कह पाना आसान काम नहीं है। तेरह साल
की स्तुति उन दिनों न तो किसी से मिलना पसंद करती है और न ही स्कूल जाना। कारण पूछो तो केवल एक ही बात कहती है कि मेरा मन बहुत खराब होता है और नहीं चाहती कि मेरे दोस्तों को पता चलें कि मेरी क्या पेशानी है। हैरानी की बात है मगर स्तुति को लगता है की यह बदलाव केवल उसी के साथ हो रहे है जबकि वास्तविकता यह है कि उसकी उम्र की सभी लड़कियों में यह बदलाव आ रहें है।


बारह साल का
यासिर भी कुछ ऐसे ही बदलावों से परेशान है। उसे लगता है कि अचानक से उसकी मूंछे आने लगी है जबकि उसकी उम्र से बाकी लड़कों में ऐसा बदलाव उसने नहीं देखा है। सभी उसे अंकल कहकर चिढ़ाते है जिसके कारण उसके आत्मसम्मान को ठेस पहुचती है। उसे लगता है कि शायद वह अपनी उम्र के लड़कों से जल्दी बढ़ा हो रहा है।

उम्र के बढ़ने के साथ इन बदलावों का आना सामान्य है। लड़कियों में शरीर में आकार में
बदलाव, मासिक धर्म से परिचय, मानसिकता में बदलाव आदि कुछ सामान्य बदलाव है। वहीं दूसरी ओर लड़कों के शरीर में बालों का बढना, आवाज में भारीपन आना, मूंछों का आना, विपरीत लिंग में रूचि पैदा होना आदि कुछ बदलाव है। पर इन परिवर्तनों को अपनाना हर बच्चे के लिए आसान नहीं होता है। कई बार कुछ बच्चे इन् बदलावों के कारण तनाव डिप्रैशन तक का शिकार हो जाते है। अभिभावक होने के नाते आपको अपने बच्चे को इस समस्या से बाहर निकालने का काम करना है। आईये जानते है कि कैसे आप अपने बाचे को इन मुश्किल की घड़ी में साथ दें।

चर्चा करें : -
सबसे पहले जब बच्चे बड़े होने लगते है तो उनके माता-पिता बन्ने से बेहतर है
कि आप उनके दोस्त बनें। सर गंगाराम अस्पताल की कंसलटेंट साइकोलोजिस्ट डॉ आरती आनंद के अनुसार, उम्र के इस दौर में अपने बच्चे से उसका दोस्त बनकर बात करें। उससे चर्चा करें कि आपका बच्चा कौन सी समस्या से गुजर रहा है। जब तक आप दोस्त बनकर अपने बच्चे से उसकी समस्याओं पर चर्चा नहीं करेंगे तब तक आपका बच्चा परेशान ही रहेगा।


सभी एक से नही होते : -
कई बार बच्चो को लगता है
की उसके साथ हो रहें शारीरिक व मानसिक बदलाव केवल उन्हीं के साथ हो रहें है क्योंकि उनके बेस्ट फ्रेंड तो पहले की ही तरह है। वे यह बात नही समझ पाते है की जब हमारी शक्ले, खानपान सब कुछ दूसरे से अलग है तो फिर उम्र के साथ होने वाले बदलाव क्यों नहीं। डॉ आनंद के अनुसार, अपने बच्चे को समझाए कि हमारे सभी के शरीर के हार्मोन्स दूसरे से अलग होते है इसलिए बदलाव किसी बच्चे में जल्दी तो किसी में देर से देखने को मिलते है।


समझाएं : -
कई बार बच्चे बदलाव क्यों हो रहे है यह तो समझ लेते है मगर इन्हें अपनाने के लिए तैयार नहीं होते है। ऐसा विशेष रूप से किशोरियों के साथ मासिक धर्म के शुरुआत के दौरान होता है। ऐसी परिस्थिति में अपने बच्चे को समझाएं कि बदलाव हर व्यक्ति के भीतर हर उम्र में होते है। उसे किसी शिशु, बुजुर्ग या अपना उदाहरण दें। उसे इन बदलावों
की महत्ता के बारें में भी बताएं। उसे समझाएं कि यदि यह शारीरिक बदलाव उम्र के इस पड़ाव पर न हो तब आपको परेशान होने कि जरुरत है। ऐसा कहना है डॉ आनंद का।

उसे बताएं कि जब आप किशोरावस्था में थी तब आपने कैसे इस बदलाव को अपनाया था।
और अगर समस्या बेटे की है तो पिता को उसे समझाने की जिम्मेदारी को उठाना चाहिए। इससे आपका बच्चा अपने समस्या को ज्यादा अच्छे ढंग से बता सकता है। समझाते हुए एक बात का ध्यान रखे कि आप अपना अनुभव बताते हुए झूठ न बोले या यह जताने का प्रयास न करें कि आप कितने महान थे और आपने बिना डरे या घबराएं ही इस परेशानी से तारतम्य बिठा लिया था।

रुढ़िवादी विचारधारा को त्यागे : -

अक्सर हम मॉर्डन विचारधारा के होने के बाद भी कुछ रुढ़िवादी विचारों को लादे नहीं। अभिभावकों को पुरानी या घटिया रुढ़िवादी विचारधारा को त्यागना बहुत जरुरी है। आज जिस तरह खुली विचारधारा में बच्चे जी रहे है यदि आप उन पर होने वाले बदलावों पर बार बार टोकते है तो आप उन्हें परेशान कर रहें है। आपको खुली विचारधारा को अपनाना होगा।

इस उम्र में सेक्स के प्रति बढती रूचि और मन में उठती जिज्ञासाओं को भी समझने का प्रयास करें। अक्सर इस उम्र के लड़कों का रुझान इस ओर कुछ ज्यादा बढ़ जाता है। यदि आपका बच्चा किसी विषय पर कुछ जानना चाहता है तो उसे बेशर्म कहकर उसकी बात को काटकर उसे चुप न कराएँ बल्कि उसके सवालों का उत्तर देने का प्रयास करें।

डॉ आनंद ने अभिभावकों को यह सुझाव दिया है कि इस विषय पर बहार या अपने दोस्तों से गलत सूचनाएं प्राप्त करने से बेहतर है कि आप उन्हें सही जानकारी दें। यदि आप चाहते है कि किसी गलत स्रोत से गलत जानकारी पाकर आपका बच्चा गुमराह न हो तो आप उसे सही जानकारी दें।

अपने शरीर की देखभाल अच्छे से करें :-

यदि आप अपने शरीर की देखभाल अच्छे से करते है तो आप शायद इन परिवर्तनों को अपनाने में ज्यादा बच सकते है। इस बात को अपने बच्चे को समझने का प्रयास करें। पौष्टिक भोजन और व्यायाम आपके बच्चे को स्वस्थ रखने में मदद करेगी और उसके तनाव से लड़ने में भी मदद करेगा।

परेशान न हो : -

अभिभावक को यह समझना जरुरी है कि आपका बच्चा उम्र के ऐसे पड़ाव के साथ गुजर रहा है जहाँ बहुत कुछ हो रहा है। इस उम्र में अपना बच्चा से शारीरिक और मानसिक बदलावों से गुजर रहा है जिस कारण आपके बच्चे के व्यवहार में बदलाव आ रहा है। हो सकता है कि आपके समझाने पर भी आपका बच्चा पूरी तरह से आपकी बातों को न समझे या थोडा सा परेशान रहें। ऐसी स्थिति हो तो आप अपना आप न खोये बल्कि शांत रहने का प्रयास करें। याद रहें इस समय आपके बच्चे को सबसे ज्यादा दोस्त की जरूरत है। उसका दोस्त बने और उसकी परेशानी को समझकर उससे उबरने में उसकी मदद करें।

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