बुधवार, 25 जुलाई 2012

बुजुर्गों में पनपती भावनात्मक असुरक्षा

आज कहीं ना कहीं बुजुर्गों के प्रति हमारे समाज का नजरिया बदल रहा है। अब चाहे इसे आधुनिक जीवन शैली कहें या हमारे समाज पर ब-सजय़ता पाश्चात्य संस्कृति का असर। आज की पी-िसजय़ के पास हमारे बुजुर्गों के लिए कहीं ना कहीं समय का अभाव दिखता है। अब इसे हमारी युवा पी-िसजय़ की महत्वाकांक्षा कहें या तेजी से आगे ब-सजय़ने की ललक। युवा पी-िसजय़ की ये बेरूखी हमारे बुजुर्गों में इमोश्नली अटैचमेंट की कमी महसूस कराती है। ऐसे में हमारे बुजुर्ग अपने में ही खोने लगते हैं।

जिन बच्चों का प्यार उन्हें हमेशा एनर्जी और उत्साह देता था आज वहीं बच्चे उनसे अलग-ंउचयथलग दिखाई देने लगे हैं। तो आखिर क्यों हो रहा है हमारे समाज में ये बदलाव, आइए जाने कैसे दें ऐसे में हम अपने बुजुर्गों को भावनात्मक सुरक्षा।

बुजुर्ग हमारी धरोहर

मातृ देवो भवः, पितृ देवो भवः इस पंक्ति को बोलते हुए हमारा सिर श्रद्धा से -हजयुक जाता है और सीना गर्व से तन जाता है। यह पंक्ति सच भी है जिस प्रकार ईश्वर अदृश्य रहकर हमारे माता-ंउचयपिता की भूमिका निभाता है उसी प्रकार माता-ंउचयपिता हमारे दृश्य, साक्षात ईश्वर है।

जो परिवार में सर्वोपरि थे और परिवार की शान सम-हजये जाते थे आज उपेक्षित, बेसहारा और दयनीय जीवन जीने को मजबूर नजर आ रहे है यहां तक कि प-सजय़े लिखे लोग जो अपने आप को आधुनिक मानते है, अपने आपको परिवार की सीमाओं में बंधा नही रखना चाहते।

क्या आप नही जानते मां बाप ने आपके लिए क्या-ंउचयक्या किया है या जानते हुये भी अनजान बनना चाहते हैं। मैं आपकी याददाश्त इस लेख के माध्यम से लौटाने की कोशिश कर रहा हॅंू।

वो आपकी मां ही है जिसने नौ माह तक अपने खून के एक एक कतरे को अपने शरीर से अलग करके आपका शरीर बनाया है और स्वयं गीले मे सोकर आपको सूखे में सुलाया है, इन्ही मां-ंउचयबाप ने अपना खून पसीना एक करके आपको प-सजय़ाया-ंउचयलिखाया, पालन-ंउचयपोषण किया और आपकी छोटी से छोटी एवं बड़ी से बड़ी सभी जरूरतों को अपनी खुशियों, अरमानों का गला घोंट कर पूरा किया है। कुछ मां-ंउचयबाप तो अपने बच्चे के उज्जवल भविष्य के खातिर अपने भोजन खर्च से कटौती कर करके उच्च शिक्षा के लिए बच्चों को विदेश भेजते रहे। उन्हंे नही मालूम था कि बच्चे अच्छा कैरियर हासिल करने के बाद उनके पास तक नही आना चाहंेगे।

आपको मालूम होना चाहिए कि वे केवल इसी -हजयूठी आशा के सहारेे यह सब करते रहे कि आप बड़े हांेगे, कामयाब होगें और उन्हें सुख देंगे और आपकी कामयाबी पर वो इठलाते फिरेंगे।

आज हम अपने आसपास किसी ना किसी बुजुर्ग महिला या पुरूष पर अत्याचार होते देखकर, उनका निजी मामला है ऐसा कहकर क्या अपनी मौन स्वीकृति नही दे रहे है।

बुजुर्गों को प्रतिदिन थोड़ा समय अवश्य दें यदि हो सके तो शाम का भोजन उनके साथ करें।

क्या करें युवा

अवकाश के दिन उनसे अपने बचपन की बातें पूछे, पुराने फोटोग्राफ दिखायें और उन्हे अनुभव बताने का मौका दें।

छोटी-ंउचयछोटी बातों पर भी उनसे राय जरूर लें । यदि आप सहमत ना हो तो अपनी राय उन्हे सम-हजयायें वे आपकी राय को अपनी राय बना लेगें।

अपने बुजुर्गों के जन्मदिन पर उनके रोज मर्रा की छोटी-ंउचयछोटी वस्तुएॅ उन्हें भेंट करें।

मां-ंउचयबाप आपसे बहुमूल्य तोहफे नही चाहिए। वे मात्र आपमें उनके सिखाये संस्कारों को फलिभूत होते देखने की आशा करते हैंें।

आपको ध्यान रखना चाहिए समय बहुत बलवान होता है जैसा बर्ताव आप बु

बच्चों को भी दादा-ंउचयदादी के प्रति सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार करना सिखाएं क्योंकि इससे बच्चों को भी संस्कार मिलेंगे और बुजुर्ग भी अकेलापन महसूस नही करेंगे।

बुजुर्ग रखें ख्याल

अब मैं मेरे द्वारा लिखी जाने वाली किसी भी गलती या गुस्ताखी के लिये बुजुर्गों से क्षमा मांगते हुये अपनी लेखनी के माध्यम से बुजुर्गों से कुछ कहना चाहूॅगा।

बुजुर्गों और यूवा पी-सजय़ी की सोच में अन्तर तथा युवा पी-सजय़ी के पश्चिमी संस्कृति की ओर -हजयुकाव तथा ब-सजय़ती महत्वाकांक्षाओं के कारण टकराव पैदा हो जाता है। बुजुर्ग ऐसी विपरीत परिस्थितियों में -हजयल्लायें नही और धैर्य पूर्वक समस्याओं का सामना करें।

यदि युवा पी-सजय़ी नही चाहती तो नसीहत ना दें। उन्हे अपने हाल पर छोड़ देें तथा स्वयं अपनी धर्मपत्नी के साथ पसन्द के कार्य जैसे-ंउचय पूजा-ंउचयपाठ, समाजसेवा, गार्डनिंग, लेखन, चित्रकारी, संगीत आदि में वयस्त हो जायें।

अपने बच्चों से ऐसे प्रश्न पूछने से बचें जिनका उत्तर वे आपको नही देना चाहते।

परिवार में बिना मांगे कभी अपनी राय ना दें । आप तो अपने अनुभवों से बच्चों की राह आसान बनाना चाहते हैं लेकिन बच्चे इसे अपने उपर आपके विचार थोपना सम-हजयते हैं।

सभी परिवार के सदस्यों के साथ समान व्यवहार रखें व अपनी बातों में पारदर्शिता रखें।

परिवार के सभी सदस्यों पर अपनी पैनी निगाह रखें किन्तु बच्चों को ऐसा प्रतीत ना होने दे कि वे पिंजरे में कैद है केवल आवश्यकता से अधिक स्वछन्दता दिखने पर ही अंकुश लगाये।

अपनी छवी ऐसी बनाये कि आपके निर्णयों पर परिवार में सर्व सम्मति बन सके।

आप अपने पूर्व में रहे कार्यक्षेत्र के अनुसार समाज में भागीदारी निभाकर सम्मान पा सकते है।

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