गुरुवार, 10 मई 2012

आप फिट, तो फैमिली हिट


 
                                                                 परिवार के खयाल के साथ आपको अपनी हेल्थ का ध्यान रखना भी बेहद जरूरी है। हाल ही में आई एक रिसर्च की मानें, तो महिलाओं की डेथ होने की खास वजह उनकी बीमारी का देर से पता चलना है। तो क्यों ना उम्र के हर पड़ाव पर टेस्ट करवाकर इससे बचा जाए। जानते हैं इनके बारे में:


एक परफेक्ट बेटी, मां और बीवी बनने में आपका समय कहां छू मंतर हो जाता है, ये आपको खुद ही पता नहीं चलता होगा। लेकिन क्या ये जरूरी नहीं कि आप फैमिली के साथ-साथ अपनी हेल्थ का भी ख्याल रखें। अब खुद ठीक रहेंगी, तभी तो सबकुछ ठीक रख पाएंगी। वैसे, आप समय-समय पर टेस्ट करवाकर अपना हेल्थ स्टेटस चेक कर सकती हैं। आप टीनेजर हैं या शादीशुदा, कुछ टेस्ट करवा सकती हैं। देखा जाए, तो बच्ची के जन्म के समय से ही इन टेस्ट्स की शुरुआत हो जाती है।


बर्थ के टाइम पर


बच्ची के पैदा होते ही सबसे पहले थॉयराइड और मेटाबॉलिक टेस्ट किया जाता है। इनके जरिए ये देखा जाता है कि बच्ची फिट है या नहीं। फोर्टिस हॉस्पिटल में ग्यानेेकॉलजिस्ट नीरा भान कहती हैं, 'इन टेस्ट्स से यह जानने की कोशिश की जाती है कि बच्ची को कोई जन्मजात प्रॉब्लम तो नहीं है। उसके मेंटल लेवल की जांच भी की जाती है।'


गर हों टीनेजर


जब लड़की टीनएज में कदम रखती है, तो उस समय डॉक्टर हीमोग्लोबिन टेस्ट, थॉयराइड टेस्ट और ब्लड शुगर करवाने की सलाह देते हैं। अपोलो हॉस्पिटल में ग्यानेकॉलजिस्ट सविता बताती हैं, 'हीमोग्लोबिन टेस्ट के जरिए ब्लड में आयरन की क्वांटिटी, ब्लड शुगर के जरिए ब्लड में शुगर का लेवल और थॉयराइड टेस्ट से थॉयराइड ग्लैंड से निकलने वाले हॉर्मोंस की क्वांटिटी की जांच की जाती है।' बता दें कि यह ऐसा समय होता है जब बॉडी में कई तरह के हार्माेनल चेंजेज आते हैं और इसी उम्र में पीरियड भी शुरू होते हैं।


मैरिज के करीब


शादी की उम्र यानी 20 से 30 साल के दौरान डॉक्टर लीवर फंक्शन टेस्ट , हीमोग्लोबिन टेस्ट और ब्लड कोलेस्ट्रॉल चेक करवाने की सलाह देते हैं। अगर आप फैटी हैं और साथ में आपके पीरियड्स भी डिस्टर्ब रहते हैं , तो हार्मोन प्रोफाइल टेस्ट और अल्ट्रासाउंड टेस्ट भी करवा लें। दरअसल , लाइफस्टाइल में आने वाले चेंजेज से होने वाली बीमारियों की रोकथाम में ये टेस्ट हेल्प करते हैं।


आफ्टर 30


30 साल की उम्र के बाद गाइनोकॉलिजिकल एग्जामिनेशन और ब्रेस्ट सेल्फ एग्जामिनेशन करवाने जरूरी होते हैं। ये उनके लिए भी बेहद जरूरी हैं , जिन महिलाओं को पीरियड्स के दौरान दर्द होता है या जिनके परिवार में पहले किसी को कैंसर हो चुका है या फिर जिनकी डिलीवरी प्री - मैच्योर हुई हो।


प्रेग्नेंसी के दौरान


प्रेग्नेंसी के दौरान मां और बच्चे की हेल्थ को देखने के लिए ब्लड गु्रप टेस्ट , आरएच फैक्टर , टॉर्च टेस्ट , ट्रिपल टेस्ट ( अगर बच्चे में कोई जेनेटिक खराबी हो या इस बारे में कोई शक हो ), एचआईवी टेस्ट , एचपीवी टेस्ट , थॉयराइड टेस्ट और अल्ट्रासाउंड टेस्ट करवाने की सलाह दी जाती है। डॉ . नीरा कहती हैं , इनमें से किस भी टेस्ट का रिजल्ट खराब आने पर आसानी से पता लग जाता है कि बच्चे का डिवेलपमेंट सही तरह से हो रहा है या नहीं।


एग टाइम ब्लड टेस्ट


अगर आप यह जानना चाहती हैं कि किस मंथ में आप कंसीव कर पाएंगी , तो एग टाइम ब्लड टेस्ट करवा सकती हैं। यह टेस्ट फर्टिलिटी हार्मोन का स्तर नापकर यह बता देता है कि एक महिला के ओवरीज से कितने ओवम बाहर आ सकते हैं। यह खासतौर से उन महिलाओं के लिए बेहद जरूरी है , जो किसी लंबी बीमारी से गुजर रही हैं।


जब क्रॉस कर लें 40


यह उम्र का वह पड़ाव है , जिसमें थोड़ा सी भी अनदेखी या चूक कई जानलेवा बीमारियों को न्योता देती है। इस समय पैप स्मीयर टेस्ट करवाना जरूरी है , ताकि सर्वाइकल कैंसर से बचा जा सके। दरअसल , यह ब्रेस्ट कैंसर का शुरुआती दौर होता है। इस उम्र में होने वाले कुछ खास दूसरे टेस्ट हैं जैसे हीमोग्लोबिन टेस्ट , लीवर फंक्शन टेस्ट या किडनी फंक्शन टेस्ट , अल्ट्रासाउंड , पैप स्मीयर टेस्ट ( सर्वाकइल कैंसर की जांच के लिए , मैमोग्राफी ( बे्रस्ट कैंसर की जांच के लिए ), बोन डेन्सीटोमेट्री ( हड्डियों की मजबूती जांचने के लिए ), ईसीजी और चेस्ट एक्सरे ( जरूरत पड़ने पर ) वगैरह।


मिनोपॉज के वक्त


मिनोपॉज की स्थिति अमूमन 40 साल की उम्र के बाद आती है। अगर महिला को हार्ट प्रॉब्लम है , तो ईसीजी करवाना जरूरी है। इस समय सोनोग्राफी कराना ठीक रहता है। क्योंकि इससे एब्डोमन के सभी अंग लिवर , तिल्ली , किडनी , पैनक्रियाज की भी स्क्रीनिंग हो जाती है। साथ ही , आंखों को भी चेक करवा लें।


जब पहुंचे 50 में


इस उम्र में ब्लड , यूरीन , ईसीजी , लिलिपड प्रोफाइल , ब्लड शुगर , सोनोग्राफी और ओवरी स्ट्रेस टेस्ट करवाए जाते हैं। दरअसल , उम्र बढ़ने के साथ कई बीमारियां दस्तक देनी शुरू कर देती हैं। यही समय होता है , जब उन्हें शुरुआती अवस्था में ही पकड़ा जा सकता है।

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